घोर राष्ट्रवादी थे गांधी, पर उनका राष्ट्रवाद अनन्य और समावेशी दोनों था- प्रो. गोपीनाथ शर्मा
‘गांधी और वैश्विक समसामयिक प्रासंगिकता’ पर सेमिनार आयोजित
लाडनूं। जैन विश्वभारती संस्थान के शिक्षा विभाग के तत्वावधान में ‘गांधीजी और वैश्विक समसामयिक प्रासंगिकता’ पर ई-सेमिनार का आयोजन किया गया। इसमें जे.आर.आर. संस्कृत विश्वविद्यालय जयपुर के निवर्तमान डीन और विभागाध्यक्ष
प्रो. गोपीनाथ शर्मा ने विचार प्रकट करते हुए कहा कि गांधी के लिए आध्यात्मिकता, नैतिकता, राजनीति और अर्थशास्त्र अविभाज्य थे। उनकी दृष्टि में राजनीति से धर्म का बनावटी बंटवारा समस्या पैदा करता है। वे धर्म को कर्मकांड से बल्कि इसे ऐथिक्स प्रेम और सेवा, कर्तव्य और उत्तरदायित्व की भावनाओं से ही समझा जा सकता है। गांधी घोर राष्ट्रवादी थे, लेकिन उनका राष्ट्रवाद अनन्य और समावेशी दोनों था। उनका राष्ट्रवाद किसी अन्य राष्ट्रवाद के प्रति विरोधपूर्ण नहीं था। गांधीजी के लिए बिना स्वदेशी के स्वराज की कल्पना दूभर थी। वे मानते थे कि अर्थशास्त्र में स्वदेशी और औद्योगिक जीवन से पलायन भारत के लिए विध्वंस साबित होगा। इसी तरह विदेशी भाषा और विदेशी विचारों में दीक्षित होना सर्वसाधारण से कट जाना है। गांधीजी दूसरे के धर्म को अपनाने को नैतिक-स्खलन मानते थे। हमें उनके विचारों की रोशनी की फिर से आवश्यकता है। जब हम आत्मनिर्भर भारत और आत्मनिर्भरता की खोज कर रहे हैं। और किन्ही बातों के अलावा यह स्वराज और उनके विचार इस समस्याग्रस्त समय से पार पाने में विश्व के काम आ सकते हैं। उन्होंने हमें स्वदेशी के प्रति अंधभक्त होने के खतरों से भी आगाह किया था। किसी वस्तु को उसके विदेशी मूल के होने पर बायकाट करने और ऐसे काम में समय जाया करने या उसके लिए प्रयास करना, जो देश के लिए उपयुक्त नहीं हो, अपराध है। गांधीजी के लिए स्वदेशी की जड़ अहिंसा, प्रेम और नि:स्वार्थ सेवा में थी। उनका सबसे प्रबल संदेश है कि हमारा प्रत्येक आचरण नैतिक रूप से शुद्ध होना चाहिए। साध्य की अपेक्षा साधन ज्यादा महत्वपूर्ण है। वे अपने जीवन में भागवद्गीता के संदेशों से गहरे प्रभावित थे। अनासक्ति का सबक उन्होंने गीता के पाठ से ही ग्रहण किया था। किंतु भारतीय चिंतन परंपरा में कहीं गहरे धंसे हुए थे। गांधी जी की मूल सीख सत्य और अहिंसा थी। सत्य और अहिंसा के उनके दर्शनों को समझे बिना कोई गांधी को भी नहीं समझ सकता है। उनके ये विचार भारतीय चिंतन और दर्शन से अनुप्राणित है। इन्हें भली-भांति समझने और उन्हें प्रसांगिक बनाने की आवश्यकता है। गांधी के आदर का यह भी आधार है कि उन्होंने अपने विचारों के आधार पर एक व्यावहारिक जीवन दर्शन विकसित किया था। लोग इन विचारों से अपने को जोड़ते हैं, लेकिन जीवन में उनके अनुसार व्यवहार में कठिनाई का अनुभव करते हैं। आज के दौर में भी गांधी प्रासंगिक हैं। हम उनका स्मरण तो करते हैं, लेकिन उनका अनुकरण करने में असमर्थ रहते हैं।
वैश्विक स्तर पर अहिंसा के सिद्धांत का पालन जरूरी
अपेक्स विश्वविद्यालय, जयपुर केक्षशिक्षा विभाग के डीन प्रो. अशोक कुमार सिडाना ने कहा कि गांधीवादी दर्शन न केवल राजनीतिक, नैतिक और धार्मिक है, बल्कि पारंपरिक और आधुनिक तथा सरल एवं जटिल भी है। गांधीजी के अनुसार मन, वचन और शरीर से किसी को भी दु:ख न पहुंचाना ही अहिंसा है। गांधीजी के विचारों का मूल लक्ष्य सत्य एवं अहिंसा के माध्यम से विरोधियों का हृदय परिवर्तन करना है। अहिंसा का अर्थ ही होता है प्रेम और उदारता की पराकाष्ठा। गांधी व्यक्तिगत जीवन से लेकर वैश्विक स्तर पर अहिंसा के सिद्धांत का पालन करने पर बल देते थे। आज के संघर्षरत विश्व में अहिंसा जैसा आदर्श अति आवश्यक है। गांधीजी बुद्ध के सिद्धांतों का अनुगमन कर इच्छाओं की न्यूनता पर भी बल देते थे।उनके इस सिद्धांत का पालन किया जाए, तो आज क्षुद्र राजनीतिक व आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये व्याकुल समाज व विश्व अपनी कई समस्याओं का निदान खोज सकता है। आज संपूर्ण विश्व अपनी समस्याओं का हल हिंसा के माध्यम से ढूंढना चाहता है। वैश्वीकरण के इस दौर में वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा ही खत्म होती जा रही है। अमेरिका, चीन, उत्तर कोरिया, ईरान जैसे देश हिंसा के माध्यम से प्रमुख शक्ति बनने की होड़ दूसरों पर वर्चस्व के इरादे से हिंसा का सहारा लेते हैं। वैश्विक रूप से शस्त्रों की होड़ लग गई है। यह अंधी दौड़ दुनिया को अंततः विनाश की ओर ले जाती है। आज अहिंसा जैसे सिद्धांतों का पालन करते हुए विश्व में शांति की स्थापना की जा सकती है, जिसकी पूरे विश्व को आवश्यकता है।
गांधी ने विकसित किया एक व्यावहारिक जीवन दर्शन
जैन विश्वभारती संस्थान के शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने कहा कि गांधी का मूल सीख सत्य और अहिंसा थी। सत्य और अहिंसा के उनके दर्शनों को समझे बिना कोई भी गांधी को नहीं समझ सकता है। यह विचार भारतीय चिंतन और दर्शन से अनुप्राणित है। इन्हें भली-भांति समझने और उन्हें प्रासांगिक बनाने की आवश्यकता है। हम गांधी का आदर इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने इन विचारों के आधार पर एक व्यावहारिक जीवन दर्शन विकसित किया था। अधिकतर लोग इन विचारों से अपने को जोड़ते हैं, लेकिन जीवन में उनके अनुसार बरतने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। गांधी जी आज के दौर में भी प्रासंगिक हैं। इसी से हम उन्हें निरंतर स्मरण करते हैं, तब भी जब हम उनका अनुकरण करने में अपने को असमर्थ पाते हैं। सेमीनार में 220 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया तथा संकाय सदस्य डाॅ. मनीष भटनागर, डाॅ. भावाग्राही प्रधान, डाॅ. अमिता जैन, डाॅ. सरोज राय, डाॅ. गिरिराज भोजक, डाॅ. आभा सिंह, डाॅ. गिरिधारी लाल शर्मा एवं सुश्री प्रमोद ओला उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अंत में आभार ज्ञापन डाॅ. विष्णु कुमार ने किया।
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