आत्मा का परमात्मा से मिलन ही योग है योगगुरु ढाकाराम जी
Yoga is the union of the soul with God Yogaguru Dhakaram ji
योग शब्द अब अनजाना नहीं रहा है, क्योंकि जहां देखो वही योग का प्रचार प्रसार है। टी.वी, पत्रिका, सी.डी., डी.वी.डी., पुस्तकें और बहुत सारी संस्थाए है जो योग कक्षाए चलाती है। चारों तरफ योग ही योग है पर आखिर यह योग है क्या? क्या शरीर को तोडना मरोडना ही योग है, या प्राणायाम ही योग है, या फिर ध्यान ही योग है?
आज योग को लोगों ने सिर्फ कसरत या आसन तक ही सीमित कर दिया है, किन्तु अच्छे आसन करने मात्र से ही योग नहीं होता अथवा शरीर को तोड मरोड कर योग नहीं होता। यह तो वह जादू है जिसकी व्याख्या करना भी कठिन है। यह तो हम सभी जानते है कि जोडना और जोडने को योग कहते है। सवाल यह उठता है कि क्या जोडे? शास्त्रों के अनुसार आत्मा का परमात्मा से मिलन ही योग है, मगर आजकल हम आत्मा और परमात्मा की बाते करें तो ज्यादातर लोग सुनना ही नहीं चाहते है। कैसी आत्मा व कैसा परमात्मा का मिलन यह तो बहुत ऊपर की बातें है, पहले हम अपने शरीर से तो जुड जाएं, मतलब जो कार्य हम करें उसमें मन लगाकर तल्लीन होकर तथा एकाकार होकर करने को ही योग कहते है। योग शब्द संस्कृत के युज् धातु से बना हैं जिसका शाब्दिक अर्थ जोडना है। किसी वस्तु को अपने से जोडना या किसी अच्छे कार्य में तन-मन लगाना ही योग है, कार्य शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक हो सकते है। आजकल लोगों में यह मान्यता आ गई है कि योग सिर्फ बीमारियों को ठीक करने की टेबलेट है और योग शुरू करते ही चाहते है कि तन और मन की सारी समस्याएं एकदम से ठीक हो जायें। यह बात ठीक है कि योग में षटकर्म, योगासन, क्रियाएं, प्राणायम और ध्यान करने से शारीरिक व मानसिक सारी समस्याओं
का निदान हो जाता है, लेकिन इसका असर धीरे-धीरे आता है। आजकल तो लोग यह मानते है कि बस एक दो दिन किया और कहते है कि आराम नहीं आया। इसके फायदे शत-प्रतिशत है लेकिन थोडा धैर्य और अनुशासन चाहिए। आसन क्रियाओं के साथ आहार विहार का भी ध्यान रखना चाहिए तभी इसमें जल्दी फर्क दिखने लगेगा। ऋषि-मुनि स्वयं और समाज को स्वस्थ बनाने, शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए योग करते एवं कराया करते थे लेकिन दुःख की बात यह है कि हमारी प्राचीन संस्कृति को हम लोग भूल गये हैं। योगा के नाम को पकड कर अपने आप को आधुनिक मानने लगे है। योग तो आनन्दमय जीवन जीने की कला है। योग साधना का उद्देश्य चित्त को शान्त समाहित करके अनादि परमब्रह्म में अपने को लीन कर देना है। योग के कई प्रकार होते है जैसे राजयोग, भक्तियोग, लययोग, ज्ञानयोग, कर्मयोग, हठयोग इत्यादि। महर्षि पातंजली द्वारा रचित श्योगसूत्रश्योग दर्शन का मूल ग्रंथ है। इन्होंने योग के आठ अंग बताये हैं, जिसे अष्टांग योग के नाम से जाना जाता है। वे यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि है। चलिये यह सब छोडकर हम इस पर विचार करें कि हमारा तनाव और बीमारियां कैसे कम हो। अगर हम यम नियम को छोड दें और आसन प्राणायाम एवं योगिक क्रियाओं को ध्यान पूर्वक करें तो धीरे-धीरे यम नियम का आचरण करने लग जाते है। योगासन हमारे शरीर को स्वस्थ, सबल एवं निरोग रखते है। जैसे आसन नाम से ही मालूम होता है। आसन शरीर की वह स्थिति है जिसमें आप अपने तन व मन को शान्त, स्थिर एवं सुख से रख सकें, इसलिए कहा गया है कि श्स्थिरं सुखम् आसनम्ष्
कुछ लोग आसनों का संबंध शारीरिक व्यायाम एवं शरीर को मांसल बनाने की प्रक्रिया से जोडते है। ऐसा नहीं है, आसन न तो शारीरिक मांसलता बनाने के लिए बनाये गये है, न ही शरीर को झटके के साथ हिलाने डुलाने के लिए। यह तो शरीर को स्वस्थ रखने के लिए एक लय, एक रिद्म, बिना झटके के अपने शरीर को शक्ति एवं सामथ्र्य का पूरा ध्यान रखकर करने के लिए है। जो आसन हम करें उसमें पूरा तन और मन लगाना चाहिए। जब हम आसन को शारीरिक व मानसिक तौर पर करेंगे तो ही हम आध्यात्मिकता की ओर बढेंगे। आसन के द्वारा मांसपेशियों में साधारण खिंचाव, आंतरिक अंगों की मालिश एवं सम्पूर्ण स्नायुओं में सुव्यवस्था आने से अभ्यासी को अद्भुत लाभ मिलता है। असाध्य रोगों में लाभ एवं उनका पूर्णरूपेण निराकरण भी हो जाता है। आवश्यकता इस बात की है कि हम नियमित अभ्यास करें सिर्फ अच्छी चर्चाओं व गुणगान करने से लाभ नहीं मिलेगा। अभ्यास तो नियमितता से करना ही होगा। उदाहरण के तौर पर कितनी भी कुशलता के साथ सैद्धान्तिक रूप से ड्राइविंग सिखायी जाये लेकिन ड्राईविंग का सही अनुभव प्रायोगिक करने से ही आयेगा। अतः साधकों से निवेदन है कि अगले अंक से जो आसन, प्राणायाम और क्रियाओं की सीरिज चले उसको करके ही पूर्ण लाभ उठायेंगे, ऐसी हमारी मान्यता है।
योगापीस व एकम योगा के संस्थापक
योगगुरु ढाकाराम जी