राजीव कृष्णा बने यूपी के नए DGP, 1991 बैच के IPS को सौंपी गई पुलिस की कमान
उत्तर प्रदेश का नया डीजीपी राजीव कृष्णा को बनाया गया है। प्रशांत कुमार पिछले डेढ़ सालों से इस पद पर थे। आज शनिवार को वे रिटायर हो गए। आज उनके काम काज का आखिरी दिन था। प्रशांत कुमार पिछले चार बार से यूपी में कार्यवाहक डीजीपी ही नियुक्त हो रहे थे।
आपको बतादें कि राजीव कृष्णा 1991 बैच के IPS हैं। उन्हें कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया है। राजीव कृष्ण वर्तमान में सतर्कता निदेशक और यूपी पुलिस भर्ती बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं और उन्हें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सबसे भरोसेमंद अधिकारियों में से एक माना जाता है। राजीव कृष्णा जून 2029 तक सेवा में बने रहेंगे।
राजीव कृष्ण का परिचय
नाम: राजीव कृष्ण
जन्म: 26 जून 1969
शैक्षिक योग्यता: इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन में बीई
वर्तमान पद: सतर्कता निदेशक और यूपी पुलिस भर्ती बोर्ड के अध्यक्ष
राज्य सरकार ने डीजीपी चयन के लिए नियमावली 2024 को मंजूरी दी है, लेकिन अभी तक समिति का गठन नहीं हुआ है। ऐसे में प्रशांत कुमार को सेवा विस्तार न मिलने पर राजीव कृष्ण डीजीपी पद के प्रबल दावेदार थे।
राजीव कृष्णा ने अपने पुलिस करियर की शुरुआत प्रयागराज में प्रशिक्षु आईपीएस अधिकारी के रूप में की। इसके बाद उन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया।
एएसपी: बरेली, कानपुर और अलीगढ़ में एएसपी के रूप में कार्य किया।
एसपी और एसएसपी: फिरोजाबाद, इटावा, मथुरा, गौतम बुद्ध नगर, आगरा और लखनऊ में एसपी और एसएसपी के रूप में कार्य किया।
डीआईजी और आईजी: मायावती शासन के दौरान लखनऊ के डीआईजी और मेरठ रेंज के आईजी के रूप में कार्य किया।
राजीव कृष्ण को कार्यवाहक डीजीपी बनाने पर अखिलेश यादव ने एक्स पर लिखा, ‘यूपी को मिला एक और कार्यवाहक डीजीपी! आज जाते-जाते वो जरूर सोच रहे होंगे कि उन्हें क्या मिला, जो हर गलत को सही साबित करते रहे। यदि व्यक्ति की जगह संविधान और विधान के प्रति निष्ठावान रहते तो कम-से-कम अपनी निगाह में तो सम्मान पाते। अब देखना ये है कि वो जो जंजाल पूरे प्रदेश में बुनकर गये हैं, नये वाले उससे मुक्त होकर निष्पक्ष रूप से न्याय कर पाते हैं या फिर उसी जाल के मायाजाल में फंसकर ये भी सियासत का शिकार होकर रह जाते हैं। दिल्ली-लखनऊ की लड़ाई का खामियाज़ा उप्र की जनता और बदहाल क़ानून-व्यवस्था क्यों झेले? जब ‘डबल इंजन’ मिलकर एक अधिकारी नहीं चुन सकते तो भला देश-प्रदेश क्या चलाएंगे.’