सदाशिव समारम्भाम् शंकराचार्य मध्यमाम्।
अस्मदाचार्य पर्यन्ताम् वंदे गुरु परंपराम् ।।
आज भगवान आदि शंकराचार्य जी के अवतरण दिवस की आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं।यदि आप हिन्दू हैं और आदि शंकर को नहीं जानते तो यह आपके लिए ही नहीं अपितु समस्त हिन्दू समाज के लिए दुःखद है।सनातन धर्म का पुनरुद्धार करने हेतु साक्षात भगवान शंकर ही शंकराचार्य बनकर आए।अवैदिक मान्यताओं के गहन अंधकार में जाते हुए भारतवर्ष में पुन: सनातन धर्म का प्रकाश भर दिया और सनातन विरोधी समस्त शक्तियों को तर्क से परास्त किया।केरल से कश्मीर, पुरी (ओडिशा) से द्वारका (गुजरात), श्रृंगेरी (कर्नाटक) से बद्रीनाथ (उत्तराखंड) और कांची (तमिलनाडु) से काशी (उत्तरप्रदेश),हिमालय की तराई से नर्मदा-गंगा के तटों तक और पूर्व से लेकर पश्चिम के घाटों तक उन्होंने यात्राएं करते हुए अवैदिक मतावलम्बियों को शास्त्रार्थ में पराजित करते हुए अपना सम्पूर्ण जीवन वैदिक सनातन धर्म की सेवा में लगा दिया।हम सब सनातन धर्मी ऋणी हैं उन भगवान शंकराचार्य के,जिन्होंने मृतप्राय सनातन धर्म को जीवंत कर दिया।सात वर्ष के हुए तो वेदों का अध्ययन और बारहवें वर्ष में सर्वशास्त्र अध्ययन और सोलहवें वर्ष में ब्रह्मसूत्र- भाष्य रच दिया। लुप्तप्राय सनातन धर्म की पुनर्स्थापना,शास्त्रार्थ करते हुए तीन बार भारत भ्रमण, शास्त्रार्थ दिग्विजय, भारत के चारों कोनों में चार शांकर मठ की स्थापना, चारों कुंभों की व्यवस्था, वेदांत दर्शन के अद्वैत मत की स्थापना, दशनामी नागा संन्यासी अखाड़ों की स्थापना, आदि बहुत से कार्य आचार्य शंकर ने किए।शंकराचार्य जी के विराट व्यक्तित्व और अद्वैत दर्शन को जन – जन तक पहुंचाने हेतु मैंने एक नवीन ग्रंथ की रचना की है जो शीघ्र ही आपके हाथों में होगा।
एक बार पुनः आप सबको भगवान आदि शंकराचार्य जी के अवतरण दिवस की बहुत – बहुत शुभकामनाएं।
डॉ विद्यासागर उपाध्याय