The importance of yoga in human life.

योग का मानव जीवन में महत्व

योग का मानव जीवन में महत्व योग शब्द अपने आप में बहुत छोटा साथ ही बहुत विराट भी है। योग का छोटा रुप (योग यानी जोंडना) इसके बिना हम कुछ नही कर सकते। विराट रुप कहू तो महर्षिपातंजलि ने इसके ऊपर प्रकाश डाला और पूरा एक शास्त्र ही लिख दियाहै।
इसकीअनेकों मीमांषाए भी लिखी जा चुकी हैं। औंर आज भी इसका अध्ययन व अनुषीलन जारी हैं। पर सूक्ष्म रुपसे कहें तो अच्छे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के साथ जीवन जीते हुये लक्ष्य की प्राप्ति करना ही “योग” हैं। अब सवाल यह है कि लक्ष्य क्याहैं ?
विभिन्न व्यक्तियों के अनेकों विभिन्न भौंतिक लक्ष्य हो सकते हैं एवं उनकी प्राप्ति भी योग से ही होती हैं। क्योंकि पंतजलि कहते हैं “योगःकर्मसु कौशलम् ”। मगर अंत: मानव मात्र का परम लक्ष्य एक ही है “आनन्द” इसी को पाने की चाह में हम भटकते रहते हैं।यहाॅ तक की भौतिक लक्ष्य भी हम इसी की चाह में बनाते है।
मगर भौतिकता में यह स्थाई रूप से हासिल नहीं हो पाता है।अतरू योग ही एक साधन हैं विज्ञान है जोआनंद की स्थाई प्राप्ति करा सकता हैं। योग का अर्थ केवल आसन या प्राणायाम या ध्यान नहीं है।योग इन सबकी समष्टि से भी अलग है और ज्यादा है। कुल मिलाकर मानव जीवन में योग के बिना कुछ भी संभव नहीं है।
अब सवाल यह हैं कि जब जीवन में योग के बिना कुछ होता ही नही है तो क्यों न इसे समझकरअपनाकरअपने जीवन को बेहतर और लक्ष्य को सुगम बनायें ?
जवाब आप स्वयं ढुंढे ! सम्पूर्ण विषय बहुत विषद होने की वजह से हम यहा योग के केवल तीन भागों – आसन; प्राणायाम और ध्यान की सामान्य चर्चा करेंगे।
आसन ही क्योंअन्य कोई व्यायाम क्यों नही ?
इसे समझने के लिये हमेंआसन व व्यायाम के मूल फर्क को समझना होगा।जितने भी प्रकार के व्यायाम होते हैं उनमे हमारी श्वास की गति बढकर ऑक्सीजन व ऊर्जा की खपत बढ जाती है। चयापचय बढ जाता है; जब कि योगासनों में श्वास स्थिर व दीर्घ होता है व चयापचय सरल हो जाता है।

हमारी श्वासो की संख्या जितनी कम होगी हमारी आयु उतनी ही लम्बी होगी व चयापचय जितना सरल होगा शरीर उतना ही युवा रहेगा मात्र 5-7 प्रकार के सहज आसन करके भी शरीर के विभिन्न जोंडो को दुरुस्त व मांसपेषियों को लचीला बनाये रख सकते है।इतना ही नहीं शरीर की समस्त भौतिक व पराभौतिक ऊर्जा के प्रवाहीमार्ग ’’मेरुदण्ड’’ ;रीढ को द्दढ़ व लचीला बनाने का मार्ग केवल योग में ही हैं।

प्राणायाम के व श्वास लेने और छोडने का नाम नही हैं अपितु यह इतना शक्तिशाली विज्ञानं है।
यह आपके तन मन और श्वास तीनों को स्वस्थ स्थिर और दीर्घ बनाता है। प्राणायामों का अभ्यास नियमित करने से हमारी
श्वास दीर्घ व गहरी हो जाती है जिससे मन निर्मल होकर शांत हो जाता है।साथ ही प्राणायााम शरीर की विभिन्न अन्तंस्रावी ग्रन्थियों पर भी समुचित सकारात्मक प्रभाव डालकर उन्हें निरोग करते है जिससे हमारा शरीर धीरे – धीरे निरोग हो जाता है।

ध्यान एक ऐसी वैज्ञानिक कला है कि जो हमारे जीवन में नये आयामों को खोलकर हमे अपने लक्ष्य के करीब ले जातीहै।वैसे तो ध्यान को शब्दों में व्यक्त करना मेरे लिये संभव नहीं है पर मन को पुर्णत शांत व निर्विचार कर के बंद आंखों को एक बिंदु पर स्थिर कर बैठने से धीरे – धीरे ध्यान की प्राप्ति होती है जो कि हमें आनन्द तक ले जाती है।
(ढाकाराम)
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