ज्योतिष और लक्ष्मी योग
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इस भौतिक मानवीय जीवन में से लक्ष्मी का प्रभुत्व छोड़दें तो शेष रह जाता है शून्य। लक्ष्मी है कि चिर युवा व चंचला होने के कारण एक जगह टिकती ही नहीं है।
चाणक्य ने ठीक ही कहा है कि निर्धनता आज के युग का सबसे बड़ा अभिशाप है। कैसी विचित्र सिथिति है कि शुक्र दैत्य गुरु है और बृहस्पति देवगुरु हैं। इनमें शुक्र संपत्ति का भोगव गुरु धनप्राप्ति कारक हैं एवं परस्पर शत्रु। दोनों की श्रेष्ठता हो तभी व्यक्ति धनोपार्जन कर, उसका भोग कर सकता है। आनन्द संग्रह कर सकता है। जन्मकुण्डली
में उक्त दोनों ग्रह अर्थात बृहस्पति व शुक्र दिनपति सूर्य व
निशानाथ चंद्रमा से अच्छा संबंध करते हों अर्थात इनके साथ हों या देखे जाते हों तो व्यक्ति जीवन में यथेष्टï मात्रा में धन संग्रह करता है। इसी कारण से शुक्र-चंद्र
लाटरी योग व गुरु-चंद्र गज-केसरी योग बनाते हैं।
वृष लग्न, कन्या लग्न और मकर लग्न में उत्पन्न जातकों में धन प्राप्त करने की इच्छा व लालसा अन्य लग्नोत्पन्न
जातकों से अधिक होती है लेकिन ये खर्च करना
नहीं चाहते। मकर लग्नोत्पन्न व्यक्ति परोपकार व
यशोपर्जन के लिए तो कम से कम धन खर्च कर ही
लेता है। मिथुन, तुला व कुम्भ लग्नोत्पन्न जातक का आकर्षण धन के प्रति होता है। वे मितव्ययी तो होते हैं
परन्तु कृपण नहीं। मेष, सिंह व धनु लग्न के जातक जीवन में हर भौतिक इच्छा पूर्ण करना चाहते
हैं। वे ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यचीच करने का मुख्य साधन मानते हैं। सिंह लग्न का व्यक्ति इसमें सबसे आगे रहता है। चंद्रमा चलायमान, चंचल व भावुक ग्रह हैं, अत: कर्क लग्नोत्पन्न व मंगल राशि, वृश्चिक व मीन राशि लग्नोत्पन्न व्यक्ति अत्यन्त भावुक होते हैं। इनमें धन संग्रह करने की तीव्र आकांक्षी होती है। शुक्र भोग-सेक्स, भौतिक सुख, संपत्ति, विलासिता, ऐश्वर्य, आनन्द का सूचक ग्रह
है। बृहस्पति धन संपदा प्राप्ति कारक है। इस लेख में आपको विभिन्न ग्रहों की स्थिति, स्वामी एवं उच्च-नीच आदि शब्दों का प्रयोग जानना होगा, इसके लिए आपको इस सारणी का उपयोग फलदायक होगा। लग्न, पंचम एवं नवम भाव के स्वामी ग्रहों का चन्द्रमा व शुक्र सेसंबंध हो चो अचानक धन प्राप्त होता है। गुरु धन एवं समृद्धि का कारक है। चन्द्रमा तीव्रता का कारक है। शुक्र सौन्दर्य का, ऐश्वर्य का, गुप्त कार्यों का कारक है। यदि तीनों की स्थिति गोचर में जन्मकुण्डली के समन्वय करते हुए शुभ स्थानों में होती है साथ ही दशा अन्र्दशा भी अनुकूल हो तो व्यक्ति को अवश्य ही करोड़पति बना देती है। अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि यदि उपरोक्त धन प्राप्ति के यगो भी जन्म कुण्डली में स्थित है लेकिन किस समय कौनसी दशा अन्र्दशा में धन प्राप्ति का, करोड़पति बनने का योग घटित होगा?
त्रिकोण भाव के स्वामी ग्रहों की महादशा में या द्वितीय या एकादश भाव के स्वामी ग्रहों की महादशा एवं एकादश या द्वितीय भाव की अन्तर्दशा हो। पुन: इन्ही ग्रहों की प्रत्यन्तर दशा एवं सूक्ष्म दशा में परस्पर आपसी शुभ संबंध होने पर व्यक्ति करोड़पति बन जाता है।
कुछ योग:
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द्वितीय, 8 व 9 भाव के स्वामी ग्रहों का केन्द्र त्रिकोण से शुभ संबंध होने पर साहसी, खतरनाक प्रतियोगिताओं, प्रतिस्पर्धाओं से धन प्राप्ति होती है।
लग्न, पंचम एवं नवम भाव का अथवा उनके स्वामी
ग्रहों का आपसी शुभ संबंध होने पर बुद्धि क्षमता
वाली प्रतियोगिताओं से धन प्राप्ति होती है।
धन, भाव एकादश भाव एवं भाग्य भाव में स्थित ग्रहों अथवा इन भावों से स्वामी ग्रहों का आपसी भाव
परिवर्तन होने पर करोड़पति अवश्य बनता है।
एकादशेश तथा द्वितीयेश चतुर्थ भाव में हों तथा
चतुर्थेश शुभ ग्रह की राशि में शुभ ग्रह से युत
अथवा दृष्ट हो तो जातक को आकस्मिक रूप से धन का लाभ हो तो जातक को आकस्मिक रूप से धन का लाभ होता है। यदि पंचम भाव में स्थित चन्द्रमा शुक्र से दृष्ट हो तो व्यक्ति को लाटरी, शेयर, सट्टे रेस आदि से धन प्राप्त होता है। यदि धनेश शनि हो और वह चतुर्थ, अष्टïम अथवा द्वादश
भाव में स्थित हो तथा बुध सप्तम भाव में स्वक्षैत्री
होकर स्थित हो तो आकस्मिक रूप से धन का लाभ होता है।
अब मैं प्रत्येक लग्न के अनुसार उनके धन-समृद्धि के योग
स्पष्टï कर रहा हूं।
मेष लग्न:
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मेष लग्न हो, मंगल कमेश भाग्येश 5वें हो तो जातक लक्ष्याधिपति बनात हैं। मेष राशिस्थ लग्न की कुण्डली
में सूर्य स्व का हो, गुरु चंद्र की युति 11वें हों तो
जातक लक्ष्मीवान होता है।
वृष लग्न:
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बुध एवं शनि द्वितीय स्थान में हों तो धन प्राप्ति
होती है। शुक्र मिथुन का हो, बुध मीन का हो, गुरु ध्रुव केन्द्र में हो ते जातक को यकायक अर्थ की प्राप्ति
होती है।
मिथुन लग्न:
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भाग्येश भाग्य भवन में बैठकर बुध से युति करे तो द्रव्य
की प्राप्ति का योग होता है। द्वितीयेश
उच्च स्थान में बैठा ो तो पैतृक धन की प्राप्ति
होती है।
कर्क लग्न :
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गुरु शत्रु भावस्था हो तथा केतु से युति करें तो जातक बहुत ऐश्वर्यवान, योग्य व राजनीति पटु होता है।
कर्क लग्न की कुण्डली में शुक्र 12वें या 2रे भाव में हो तो जातक धनवान होता है।
सिंह लग्न:
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शुक्र बलवान होकर चतुर्थेश केसाथ चतुर्थ भाव में हो तो जातक को आजीवन सुख प्राप्त होता।
शुक्र सूर्य के नवांश में हो तो जातक ऊन, दवा, घास, धान, सोना, मोती आदि के व्यापार से अथोपार्जन करता है।
कन्या लग्न:
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शुक्र व केतु दूसरे भाव में हो तो व्यक्ति धनाढ्य होता है तथा आकस्मिक ढंग से अर्थ की प्राप्ति होती
है। चन्द्रमा 10वें स्थान में मिथुन राशि का हो, दशमेश बुध लग्न में हो तथा भाग्येश शुक्र द्वितीय स्थान में हो तो जातक धनवान भाग्यवान व उच्च पदाधिकारी होता है।
तुला लग्न:
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शुक्र यदि केतु सहित द्वितीय भाव में हो तो जातक को
निश्चय ही लक्ष्याधिपति बना देता है। जन्म का लग्न तुला हो तथा राहु, शुक्र, मंगल, शनि 12वें भाव में यानी कन्या राशि में हों तो जातक कुबेर से भी अधिक धनवान होता है।
वृश्चिक लग्न :
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गुरु व बुध पंचम स्थान में हों तथा चंद्रमा 11 वें भावस्थ हो तो जातक करोड़पति होता है। चन्द्रमा गुरु, केतु नवम भाव में हों तो विशेष भाग्योदय होता है। चंद्रमा भाग्येश है, गुरु के साथ स्तित हो गज केशरी योग बनाता है, गुरु अपनी उच्च राशि में भी होता है जो कि धनेश है।
धनु लग्न:
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गुरु, बुध लग्न में सूर्य, शुक्र द्वितीय भाव में मंगल,
राहु, षष्ठïम् भाव में तथा शेष 3 ग्रह अलग-अलग
कहीं भी हों तो जातकआजीवन सुख भोगता है। चंद्रमा 8वें भाव में हों, कर्क राशि में सूर्य शुक्र शनि स्थित हों तो विख्यात, शिल्पादि कलाओं का जानकार पतला पर दृढ़ शरीर से युक्त अनेक सन्तानों से युक्त व निरन्तर संपत्तिवान रहता है।
मकर लग्न :
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चन्द्रमा व मंगल एक साथ 1/4/7/10 केन्द्र भावस्थ 5/9 त्रिकोण में अथवा 2/11 भाव में कही हो तो जातक
धनाढ्य होता है। धनेश तुला राशि में एवं लाभेश मंगल मकर राशिगत अर्थात् लग्न में हो तो जातक धनवान होता है।
कुंभ लग्न:
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10वें भाव में अर्थात वृश्चिक राशि में चन्द्र शनि का योग हो तो वह जातक कुबेर तुल्य ऐश्वर्य सम्पन्न होता है।
कुंभ लग्न हो, शनि लग्न में स्व का स्थित हो, मंगल
की 8वीं दृष्टिï शनि पर हो तो राजराजेश्वर योग होने से जातक पूर्णरूपेण संपन्न, सुखी, धनवान, दीर्घायु होता है।
मीन लग्न :
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यदि दूसरे भाव में चन्द्रमा एवं 5वें भाव में मंगल हो तो मंगलकी दशा में श्रेष्ठ धन लाभ होता है। गुरु 6वें भाव में हो, शुक्र 8वें, शनि 12वें तथा चन्द्रमा मंगल 11वें भावस्थ हों तो उच्चाति उच्च धनदायक योग बनात है।
कुंडली में धन योग से सम्बन्धित भाव
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प्रथम भाव – व्यक्ति स्वयं
दूसरा भाव – धन भाव
पंचम भाव – त्रिकोण / लक्ष्मी भाव
नवम भाव – भाग्य स्थान
दशम भाव – कर्म भाव
एकादश भाव – लाभ भाव
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